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सोमवार, 17 सितंबर 2012


श्री सुदर्शन जी को  श्रद्धांजलि
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निवर्तमान सरसंघचालक  श्री सुदर्शन जी भारतीय मनीषा के मूर्तिमान रूप थे। प्रत्येक विषय के अधिकारी प्रवक्ता थे। कर्णाटक के मूल निवासी होने पर भी हिंदी सहित कई भाषाओँ के ज्ञाता थे। उनका भाषा ज्ञान केवल पढने लिखने तक सीमित नहीं था। उस भाषा में अस्खलित भाषण भी देते थे।  भाषा की शुद्धता का उनका विशेष आग्रह रहता था। किसी भी पुस्तक अथवा समाचार पत्र को पढ़ते समाया अशुद्धियों को रेखांकित करते जाते थे। मिलने पर सम्बंधित व्यक्ति को बताते थे। समाचार पत्रों में की जा रही अशुद्धियों को लेकर कई संपादकों से व्यक्तिगत भेट कर उनसे आग्रह करते थे की विशेष ध्यान देकर त्रुटियों को दूर करें।
उन्होंने स्वयं कई पुस्तकों का लेखन भी किया।
उनके विशेष आग्रह पर ही मध्य प्रदेश सरकार ने हिंदी विश्व विद्यालय की स्थापना की।
अध्ययन पूर्ण करने के बाद अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। और अंतिम समय तक राष्ट्र सेवा में समर्पित रहे।
उनके जीवन की सरलता, सहजता, शुचिता, कर्मठता सबको प्रेरणा देने वाली है। जीवन भर कार्यकर्ताओं को प्रेरणा दी, मृत्यु के बाद भी अपनी आँखे दान कर  दो लोगों को दृष्टि दे गए। कर्म समर्पित सार्थक जीवन जीने वाला व्यक्तित्व आज हमारे बीच से चला गया। लेकिन  उनकी स्मृति सदैव बनी रहेगी।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के कई आयोजनों में वे उपस्थित रहे थे। परिषद् के हम सभी कार्यकर्ता उनकी जीवटता को सादर प्रणाम करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करते है। 

3 टिप्‍पणियां:

  1. जितने अधिक विनम्र थे, उतने ही विद्वान.
    नाम 'सुदर्शन' था, मगर कर्म रहा पहचान.
    कर्म रहा पहचान,समझ यह सबको आया;
    रेडी फार सेल्फलेस सर्विस की थी काया.
    कहें 'क्रान्त'हों आरएसएस के माने कितने;
    किन्तु न वैसा अर्थ लगाओ चाहे जितने.

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  2. टिप्पणी भेज के क्या करें जब आप छापते ही नहीं!!!

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  3. क्षमा करें मान्यवर! २८ सितम्बर २०१२ जब मैंने यह साईट खोल कर देखी तो १७ सितम्बर २०१२ वाली उपरोक्त टिप्पणी इस पर प्रकाशित नहीं थी इस कारण मुझे उपरोक्त २८ सितम्बर २०१२ वाली टिप्पणी करनी पड़ी अब आज आपका सन्देश आने पर पुन: देखा तो इसे प्रकाशित पाया शायद इसे तब तक एडमिनिस्ट्रेटर ने ओके नहीं किया होगा...
    धन्यवाद
    'क्रान्त'

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