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गुरुवार, 18 मार्च 2010

परिषद् की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक रूडकी उत्तरप्रदेश में दिनांक ६-७ मार्च २०१० को संपन्न हुई। बैठक में यह तय किया गया
१- परिषद् का त्रिवार्षिक अधिवेशन २५-२६ दिसम्बर २०१० को राजस्थान के अजमेर में होगा।
२-एतिहासिक उपन्यासों के सामाजिक योगदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में होगी। तिथियाँ बाद में घोषित होंगी।
३-महिला साहित्यकारों का सम्मलेन वाराणसी में होगा. तिथियाँ बाद में घोषित होंगी

5 टिप्‍पणियां:

  1. साहित्य परिषद् की स्थानीय इकाइयाँ भी अपने कार्यक्रम और फोटो यहाँ डाले तो और अच्छा रहेगा

    साहित्य परिषद् से सम्बद्ध मध्यभारतीय हिंदी साहित्य सभा ग्वालियर में दौलत गंज स्थित सभा भवन में ११ अप्रेल को ग्वालियर चम्बल संभाग का आंचलिक साहित्यकार सम्मलेन आयोजित कर रही है ,अंचल के राष्ट्रीय विचार के सुधी साहित्यकारसादर आमंत्रित हैं .

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  2. इस अवसर पर प्रख्यात लेखिका डॉ नीरजा माधव का सम्मान किया जायेगा
    प्रस्तुत है उन पर एक आलेख
    डॉ. नीरजा माधव :- आस्थावान शब्द शिल्पी- जगदीश तोमर
    डॉ. नीरजा माधव साम्प्रतिक साहित्य जगत का सुचर्चित नाम है। उनके उपन्यासों ने लेखन के नये द्वार खोले हैं तथा रचनात्मकता को एक सकारात्मक दृष्टि प्रदान की है।
    नीरजा जी का एक लेख उनके छात्र जीवन में ही 'अवकाशÓ (वाराणसी) में प्रकाशित हुआ था और वह इतना प्रशंसित एवं चर्चित हुआ कि फिर उनकी लेखनी ने रुकना नहीं जाना। तब से, वह हिन्दी की शीर्ष पत्रिकाओं में स-सम्मान प्रकाशित हो रहीं हैं और आज उनकी अपनी एक अलग से पहचान बन चुकी है।
    डॉ. नीरजा जी की रचनात्मक ऊर्जा इतनी अपरिमेय थी कि उनकी अनेक पुस्तकें बहुत शीघ्र हिन्दी पाठकों के सम्मुख आ उपस्थित हुईं हैं। एक-सवा दशक में ही नीरजा जी के छ: कहानी संग्रह, छ: उपन्यास, एक काव्य संग्रह, एक ललित निबंध संग्रह तथा अन्य अनेक पुस्तकें प्रकाशित होकर साहित्य चर्चा का विषय बन गईं हैं। इस प्रकार उन्होंने बहुत थोड़े समय में इतना कुछ अर्जित कर लिया है, जितना प्राप्त करने में प्राय: एक पूरा जीवन लग जाता है।
    आज के साहित्य जगत में नीरजा जी का एक विशिष्ट एवं प्रतिष्ठित स्थान बन चुका है। उसका एक कारण यहभी है कि उनकी लेखनी ने पिटे-पिटाये रास्तों पर चलना स्वीकार नहीं किया। उदाहरणार्थ उन्होंने नारी विमर्श और शोषित समाज के संदर्भ में वह सब नहीं लिखा जिसे लिखने का आज फैशन बना हुआ है। नारी विमर्श के नाम पर उन्होंने नारी स्वच्छंदता की वकालत भी नहीं की। शोषित समाज के पक्ष समर्थन में भी उन्होंने घिसी पिटी शोषण कथाओं का सृजन नहीं किया। उन्होंने समाजिक यथार्थ को उसकी समग्रता में देखा और अपने रचनाकर्म को कभी एक पक्षीय एवं एकांगी नहीं होने दिया। इसका कारण यही कि उन्होंने बड़ी सूक्ष्मता से देखा कि आज समाज में सब कुछ बदल रहा है और शोषण के तरीके भी बदल रहे हैं। इसलिये उन्होंने इन संदर्भों को नये रूप और नई शैली में उकेरा। उनकी इस नवीन दृष्टि और नवीन शिल्प विधान ने हिन्दी पाठकों एवं सुधी समीक्षकों को तुरंत आकर्षित किया और इस प्रकार उन्होंने साहित्य क्षेत्र में एक नई भूमि तोडऩे तथा उसे विकसित करने के लिए अप्रत्याशित कीर्ति अर्जित की।
    नारी विमर्श में उन्होंने नारी को पुरुष बनने की होड़ से मुक्त रहने को ही उपयुक्त माना। उन्होंने नारी की पीड़ा की उपेक्षा कभी नहीं की और विविध शोषण से उसकी मुक्ति के लिए एक दायित्व चेता एवं सहृदय लेखिका के रूप में सतत संघर्ष किया। किंतु उन्होंने परिवार और परिवेश में व्याप्त भारतीयता को अपने लेखन में कभी ओझल नहीं होने दिया। वह दूरदर्शन में कार्यरत हैं। किंतु वहां के दायित्वों से निवृत्त होकर जब वह घर वापस आती है तब अपने बच्चों एवं पति में ही उनकी पूरी दुनिया सिमट जाती है। उन्हें वस्तुत: नारी का यह रूप ही विशेष अभिप्रेत है।
    नीरजा जी के चर्चित उपन्यास
    नीरजा जी के लेखन का एक वैशिष्ट्य यह भी है कि वह उपेक्षितों एवं उत्पीडि़तों के प्रति विशेष संवेदनशील हैं। इस दृष्टि से उनके उपन्यास अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उनका एक उपन्यास है- ''यमदीपÓÓ उसमें तृतीया प्रकृति समुदाय अर्थात् हिजड़ों की मार्मिक कथा अंकित है। हिन्दी में वह अपने प्रकार का पहला उपन्यास है। इस उपन्यास में उन्होंने इस उपेक्षित वर्ग की व्यथा को मुखर तो किया ही है, उसके प्रति शेष समाज की विकृत मानसिकता को भी उजागर किया है। यह कथाकृति वस्तुत: इतनी मर्मस्पर्शी है कि उसे पढ़कर शायद ही कोई ऐसा पाठक हो जो इस वर्ग के सम्मानजनक और सार्थक जीवन के लिये कुछ न कुछ करने के लिये प्रेरित अनुभव न करे।
    नीरजा जी का एक उपन्यास है- तेभ्य: स्वधा उसमें भारत विभाजन के समय हुए हृदय विदारक नर संहार का एक अज्ञात अध्याय सजीव हुआ है। उसमें राजौरी में सहस्त्रों हिन्दुओं के कत्ले आम की लोमहर्षक कथा अंकित है। कथा की नायिका मीना बाइली हत्यारों द्वारा अपहृत कर ली जाती है और उसे अमीना बनाकर इस्लाम में दाखिल कर लिया जाता है। किंतु उसके हिन्दू संस्कार जीवित रहते हैं। वह कालांतर में पाकिस्तान से भारत आकर गया पहुंचती है और वहां, राजौरी घाटी में कत्ल किए गए हजारों हिन्दुओं का शास्त्र विहित विधि से तर्पण सम्पन्न करती है। इस उपन्यास लेखन में रक्त लथपथ एक अज्ञात अथवा अल्प ज्ञात घटना का दस्तावेजीकरण तो हुआ ही, अमीना के माध्यम से हिन्दू आस्था की सुदृढ़ता का चित्र भी प्रस्तुत हुआ है।

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  4. गेशे 'जम्पाÓ नीरजा जी का सर्वाधिक चर्चित उपन्यास सिद्ध हुआ है। वह अपने देश से विस्थापित तिब्बतियों के संघर्षपूर्ण जीवन का सुख दुख उकेरता है। शांत, सहिष्णु और नितांत धार्मिक तिब्बत वासियों का अपना देश छोडऩे के लिए विवश होना इस युग की सबसे बड़ी त्रासद घटना है। किंतु इस उपन्यास के नायक गेशे जम्पा को जब ज्ञात होता है कि उसके बूढ़े माता पिता, चीनी शासकों की कृपा से जेल में अपनी अंतिम सांसें गिन रहे हैं, तब वह सारा जोखिम लेकर उनकी सेवा के लिए तिब्बत के लिये रवाना हो जाता है। इसके साथ ही, वह देवयानी से, जिसके लिए उसके मन में कहीं मृदु स्थान है, कहता है- 'दूर बैठकर स्वतंत्रता की लड़ाई कैसे लड़ी जा सकती है?Ó
    यह उपन्यास अपने रचना विधान की दृष्टि से अद्भुत ही है। इसमें कतिपय प्रेम प्रसंग भी आये हैं, किंतु अत्यंत शालीन एवं परिष्कृत स्वरूप में। गेशे जम्पा देवयानी पर अपना अनुराग कभी प्रकट नहीं करता शायद प्रेम, घृणा और उलझन के लिए किसी अभिव्यक्ति की आवश्यकता नहीं होती। गेशे का संघर्षशील किंतु संयत तथा हताशा में भी कर्तव्यनिष्ठ एवं नि:स्वार्थी व्यक्तित्व पाठक को बहुत सम्मोहित करता है।
    इस उपन्यास को माननीय कुप्प सी सुदर्शन जी ने भी पढ़ा था और उन्हें लगा था कि वह अधिकाधिक् पाठकों द्वारा पढ़ा जाना चाहिए। तब उनके प्रस्ताव पर वह उपन्यास 'पाञ्चजन्यÓ में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ और इस तरह वह लाखों पाठकों द्वारा पढ़ा गया।
    इस प्रसंग में उन पर हिन्दूवादी, दक्षिण पंथी, परंपरावादी इत्यादि होने के घोषित-अघोषित आरोप भी लगे। किंतु उन्होंने उसकी चिंता नहीं की। उनका मानना है कि बिना परंपरा और अपने सांस्कृतिक परिवेश के, हमारा मूल अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा। वह लेखक के रूप में किसी आयतित विचार का अंधानुकरण कभी नहीं कर सकतीं। उपेक्षितों, पीडि़तों की सेवा उनके लिए परम वरेण्य है। उच्च मानव मूल्यों में उनकी प्रबल आस्था है। त्याग, सेवा, देश प्रेम, दया, ममता के प्रसारणार्थ उनकी लेखनी सतत्गतिमान है। ऐसी उदात्त एवं महनीय लेखिका किसी देश और समाज के लिए अतीव गर्व एवं गौरव का विषय ही हो सकती है।

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